Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 84( before the exam-4)

"लेकिन अभी तो मैं तैयार नही हूँ, एक तो मैने अभी ही जानवरो की तरह पेट भरा है और दूसरा मैं जीन्स पैंट मे बास्केटबॉल  कैसे खेलूँगा..."

"जल्दी से इधर पहुच सब जुगाड़ है... तेरे पैंट का भी और तेरे पेट का भी "

"आता हूँ "(कहा फंसा दिया यार... सिदार भाई ने...)

खेलने का मन तो नही था लेकिन सिदार  भाई की बात को टालना मैने मुनासिब नही समझा...इसलिए मुझे जाना तो था ही, फिर चाहे हँसते हुए जाता या फिर रोते हुए... मैने गली देते हुए जाना बेहतर समझा. खैर, मैं जब बास्केटबॉल कोर्ट पर पहुचा तो मालूम चला कि मामला एक प्रैक्टिस मैच से कहीं ज़्यादा है....जिसकी कहानी मुझे सिदार  ने बताई...हुआ कुछ  यूँ कि हॉस्टल  के किसी सीनियर ने किसी बात पर सिटी वालो को बास्केटबॉल  मैच  खेलने का चैलेंज दे दिया और मैच  स्टार्ट होने के कुछ ही देर बाद हॉस्टल  वालो मे से दो प्लेयर जो की मैच  विन्नर थे वो ज़ख़्मी हो गये....इसलिए सिदार  ने मुझे मैच  खेलने के लिए बुलाया....इतने लोगो मे से उसने मुझे ही कॉल किया इसकी वजह शायद ये थी कि मैने कुछ दिन पहले सीनियर हॉस्टल  मे अपने बास्केटबॉल  का एक नेशनल प्लेयर होने की हुंकार मारी थी...

"अरमान देख कर,इन मुस्टांडो मे बहुत दम है...वो 4 पायंट्स से लीड कर रहे है... सालो ने रूल तोड़कर हमारे दो प्लेयर को ज़ख़्मी और कर दिया है.. तू जरा ध्यान रखना.. तेरे से कुछ ज्यादा लगाव है सिटी वालो को.."

"शरीर देख के बात करो.. ये श्री अरमान को ज़ख़्मी करेंगे... जितना खाना इनकी पूरी टीम खाती होगी ना.. उतना तो मै लंच के बाद सौंफ सुपारी के साथ खा जाता हूँ... आने दो सालो को .."किट पहनते हुए मैने कहा

किट पहनकर मैं बास्केटबॉल  के कोर्ट मे एक प्लेयर को रीप्लेस करके आया और मैच  देख रहे लोगो पर एक नज़र दौड़ाई...वैसे कहने को तो ये एक पप्रैक्टिस मैच  था लेकिन मैच  सिटी वाले और हॉस्टल  वाले के बीच मे होने के चलते ये हाई वोल्टेज मुक़ाबला बन चुका था...बास्केटबॉल  कोर्ट के बाहर मैच  देखने वाले स्टूडेंट की गिनती लगातार बढ़ रही थी...जहाँ एक तरफ हमारी टीम को सपोर्ट करने के लिए हॉस्टल  के लड़के थे तो वही दूसरी तरफ कॉलेज की लड़किया सिटी वालो की टीम को सपोर्ट कर रही थी...जिसमे से ऐश ,विभा और दूसरी खूबसूरत चुड़ैले भी थी....मुझे बास्केटबॉल  खेलने का अच्छा ख़ासा एक्सपीरियेन्स था लेकिन पिछले 8 महीनो से मैने कोर्ट मे कदम तक नही रखा था इसलिए मैं थोड़ा नर्वस था....

"खेलना आता भी है या ऐसे ही अंदर आ गया...."मेरे पास आकर गौतम ने कहा"एक बात दिमाग़ मे भर ले कि तू इस कॉलेज के सबसे शानदार प्लेयर के खिलाफ खेल रहा है...."

"ओके अंकल...अब जा के मरवाओ अपनी..."
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एक तरफ ऐश ...गौतम का नाम लेकर उछल रही थी वही मैं बास्केटबॉल को कोर्ट मे बार -बार पटककर अपना  ग्रिप बनाने की कोशिश कर रहा था...एक दो बार मैने बास्केटबॉल  को ड्रिब्ब्ल भी किया लेकिन बास्केटबॉल  पर मेरी पकड़ अब पहले जैसे नही थी और जैसे ही मैं बास्केटबॉल  को लेकर आगे बढ़ा तो बॉल मेरे हाथ से किसी रेत की तरह फिसल गयी....

"कंचे खेल घर जाकर..."गौतम मुस्कुराते हुए बोला...

"थोड़ा सा कैल्शियम कारबोनेट लाना तो रे...."हॉस्टल  के एक लड़के की तरफ मैने इशारा किया जिसके जवाब मे वो अपना सर खुजाने लगा....

"अबे चुना ला थोड़ा सा उल्लू"
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एक तो मैं वैसे भी इतने दिन बाद खेल रहा था उपर से आस-पास जमा हो चुकी भयंकर भीड़, जिनमे से अधिकतर टनाका  माल थी, उन सबका प्रेशर अलग और उपर से मेरा दुश्मन गौतम मुझपर कॉमेंट किए जा रहा था और हर बार उसके कॉमेंट के बाद उसकी तरफ के प्लेयर्स और उनके die hard फैन्स मुझ पर हँसते हुए नज़र आते.... और कही होता तो एक -एक को खूनी ग्राउंड लेजाकर खून से नहला देता.. लेकिन यहाँ बास्केबॉल कोर्ट मे ये करना मुमकिन नहीं था...

"तेरा हर शॉट ब्रिक होगा...जिसका बास्केट होने का दूर-दूर तक कोई चान्स नही होता..."गौतम  मेरे बगल से निकलते हुए बोला..

"तुझे भविष्यवाणी हुई क्या कि मेरा हर शॉट ब्रिक होगा,एक बार सेट हो जाने दे फिर तो मैं DDG लगा कर मार लूँगा तुम सबकी..."

"वो तो वक़्त ही बताएगा..."
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रेफरी बने माइनिंग ब्रांच के एक सर ने गेम दोबारा शुरू करने का इशारा किया...

"यू आर राइट,वो तो वक़्त ही बताएगा..."
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मैं चाहे गौतम से कितनी भी लड़ाई कर लूँ या फिर मैं उसे कितनी भी गालियाँ दे दूं पर मैं एक चीज़ कभी नही बदल सकता कि वो बास्केटबॉल  का एक मंझा हुआ खिलाड़ी है...उसे बास्केटबॉल  के हर तरफ खेलना आता है...मतलब कि वो बास्केटबॉल  पास करने के साथ-साथ खुद रिंग मे बास्केटबॉल  घुसा सकता है...उसके अंदर उस दिन मैने रिबाउंडर और डिफेंडर स्किल भी देखी...इतनी क्वालिटी बास्केटबॉल  के ग्राउंड मे एक ही प्लेयर के पास होना बहुत बड़ी बात होती है...गौतम अपना गेम बहुत चालाकी से खेलता था,ड्रिब्ब्ल करते वक़्त वो सामने वाली टीम को बुरी तरह से चौका देता था..उस दिन कुछ  पल के लिए मुझे ऐसा भी लगने लगा ,जैसे कि मैं गौतम के सामने नौसीखिया हूँ...उसने कई  बार मेरे हाथ से बास्केटबॉल  अपने हाथ मे ले ली थी...वो भी बड़ी आसानी से.. मतलब बेइज्जती तो हुई ही, लेकिन गौतम के हाथो ये बेइज्जती होने से मेरी( बेइज्जती x बेइज्जती ) हो गई... बोले तो two times
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"व्हाट आ शॉट ! "जब गौतम ने कोर्ट के बीच-ओ-बीच से यानी हाफ कोर्ट से ही बास्केटबॉल  को घुमाकर रिंग मे डाल दिया तो मुझे ये कहना ही पड़ा... मतलब वाकई मे क्या शॉट था.

किसी खेल मे आप एक चीज़ नही बदल सकते और वो ये कि एक शानदार खिलाड़ी का सम्मान करना...उस मैच  के दौरान मैं गौतम के  स्किल्स से ख़ासा प्रभावित हुआ था और उस 1 पॉइंट बोनस लेने वाले हाफ कोर्ट से शॉट को देखकर मेरे मुँह से उसके लिए तारीफ के शब्द अपने आप ही निकल गये...
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लेकिन अब बारी मेरी थी ,अब तक मैं दो बार फाउल हो चुका था और साथ मे बीते दिन भी याद आ रहे थे...गौतम के पास भले ही कुछ  अच्छी टेक्नीक्स थी लेकिन DDG फ़ॉर्मूला तो मेरे ही पास था... Afterall, मैं इसका जन्मदाता था.
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"मैं इस कॉलेज का बेस्ट प्लेयर हूँ और अभी तो आधा घंटा बाकी है,तू देखते जा मैं तेरा क्या हाल करता हूँ....थोड़ी ही देर मे तुझसे 5 फाउल करवा कर मैच  ख़त्म होने पहले ही तुझे मैच  से बाहर करवा दूँगा... साले, मेरे गाल पर हाथ उठाया था तूने.. उस दिन मेरी बेइज्जती हुई थी.. आज तेरी होगी... जरा गौर से देख.. आज यहाँ वो सब मौज़ूद है, जो उस दिन वहा मौज़ूद the "गौतम अपने दाँत चबाते हुए बोला...

"All the best, then.... वैसे इंसान को कभी अपनी औकात नही भूलनी चाहिए ,तू आज तक डिस्ट्रिक्ट लेवेल से आगे नही गया होगा और मैं यहाँ नेशनल खेले बैठा हूँ.  तू मैच  मे खुद अच्छा खेलेगा ,इट ईज़ पासिबल...लेकिन तू मुझे अच्छा खेलने से रोक लेगा इट ईज़ नोट पासिबल... वैसे भी श्री अरमान के घर देर है, अंधेर नहीं... Bitch "

मैं जानता था कि गौतम एक सॉलिड प्लेयर है लेकिन उसकी बात का जवाब देना ही था...बास्केटबॉल  कोर्ट के अंदर ना सही बातो मे ही ठोक दो,मैने आगे कहा......

"तुझ जैसे को तो मैं बेंच प्लेयर के रूप मे भी सेलेक्ट नही करता..."

"तैयार हो जा अब तू..."गुस्से से तिलमिलाते हुए उसने कहा और अपने साथी प्लेयर्स के पास जाकर डिस्कशन करने लगा...

इधर हमारे मैच  मे ब्रेक हुआ था तो वही कॉलेज की भी छुट्टी हो चुकी थी और सिटी vs हॉस्टल, बास्केटबॉल मैच का हल्ला होने के कारण कॉलेज के लगभग सभी स्टूडेंट्स बास्केटबॉल  ग्राउंड मे आकर अपनी-अपनी पसंदीदा टीम को सपोर्ट कर रहे थे...और उसी दौरान ग्राउंड से थोड़ी दूर मे मुझे अरुण और नवीन एक साथ आते हुए दिखे...

"क्या स्कोर है बे अरमान..."अरुण ने चिल्ला कर दूर से पूछा, और सिगरेट मुँह मे फसाया

"26-46"

"क्या... Wow... हम लोग ट्वेंटी पायंट्स से लीड कर रहे है "

"हम लोग नहीं भाई.. वो लोग लीड कर रहे है..."

"धत तेरी... साला खुद को नेशनल प्लेयर बता रहा था मेरे सामने और यहाँ इन चूजों से हार रहा है..  इतनी बेइज्जती.. कैसे बर्दाश्त करूँगा मै.."

"कॉलेज के बेकार atmosphere की वजह से मुझे जंग लग चुका है..."

"तो जा...हिला के आ ,एक दम रिलैक्स होकर मैच  खेलने का.. अपुन जब भी किसी टेन्षन मे रह ले होता है तो यहिच करता है..."बोलते हुए अरुण ने नवीन का हाथ पकड़ लिया"किधर कट रे ले हो अंकिल..."

"ये जो सिटी वाले सीनियर्स है ना वो अक्सर मेरे काम आते रहते है इसलिए मैं उनको सपोर्ट करने वाली भीड़ मे जा रहा हूँ..."

"मतलब तू हमारी टीम को सपोर्ट ना करके गौतम की टीम को सपोर्ट करेगा..."

"उम्म...हां"

"मैं तो भूल गया था कि तू उनका चेला है..."नवीन का हाथ छोड़ कर धमकी देते हुए अरुण बोला"चल कट ले इधर से और यदि ग़लती से भी इधर दोबारा दिखा तो मर्डर हो जाएगा..."
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मैच  फिर से शुरू हुआ....एक बहुत ही पुरानी और बकवास थियरी है कि everything is fair in love and war..वॉर तो गौतम से था ही और साथ मे ऐश  से लव भी था,इसीलिए मैने बास्केटबॉल  कोर्ट के बाहर गौतम की बेज़्जती की थी,जिससे वो गेम के दौरान सिर्फ़ मुझ तक ही सिमट कर रह जाए ,मतलब कि वो सिर्फ़ मुझे ध्यान मे रख कर खेले.... अब गौतम का मुख्य उद्देश्य गेम जीतना नहीं बल्कि गेम मे मुझे नीचाँ दिखाना था... और यही पर तो लोग मुझसे हार जाते है 😎
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वैसे,ये सामने वाली टीम को हराने का बेहतरीन फ़ॉर्मूला है नेशनल तक के मेरे सफ़र मे कई  बार मैने इस फ़ॉर्मूला को एक दम फिट बैठते देखा है, सिंप्ली यदि कहे तो मैं गौतम को इस कदर भड़काना चाहता था कि वो मेरी पूरी टीम से नज़र हटा कर सिर्फ़ मुझे रोकने की कोशिश करे...हालांकी जब मै गौतम को भड़का रहा था.. तब इसकी कोई गारंटी नहीं थी कि वो ऐसा ही करेगा.. होने को तो ये भी हो सकता था वो भड़क कर और तेज़ी के साथ खेलकर हमारा खेल ही बिगाड़ दे...पर दांव तो मुझे खेलना ही था... जो मैने खेल दिया.

अब सिर्फ़ 20 मिनिट्स ही बचे थे,जब मेरी सोच मुझ पर ही भारी पड़ गयी,गौतम एक दम गुस्से के साथ खेलते हुए 2 बार बास्केट कर चुका था.... यानी 4 और पॉइंट्स सिटी वालो के पक्ष मे.

"तुम चारो मे से एमवीपी प्लेयर कौन है..."मैने अपने साथी खिलाड़ियो से पुछा...

"एमवीपी मतलब..."

"एमवीपी मतलब मोस्ट वैल्यूबल प्लेयर..."

"आइ थिंक मैं इन चारो मे सबसे अच्छा खेलता हूँ..."एक सीनियर ने अपना हाथ खड़ा किया,जिसका नाम अमर था...

"उनकी टीम से सेंटर पर एक चूतिया खड़ा है,आप वहाँ जाकर उसको कवर करना,गौतम को मैं संभाल लूँगा..."
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मैने बास्केटबॉल  हाथ मे ली और ड्रिब्ब्ल करते हुए आगे बढ़ा और जैसा कि मुझे उम्मीद थी,गौतम मुझे ब्लॉक करने आया और मैने तुरंत बॉल सेंटर पर खड़े अमर को पास की और उन्होने तुरंत बॉल झपट कर बैक बोर्ड की तरफ फेका और एक शानदार बॅंक शॉट !!!

इस शॉट ने हमे जोश मे ला दिया था, क्यूंकी मेरे इस प्लान के कामयाब होने का मतलब था कि मैं अपने डीडीजी फ़ॉर्मूला को आगे यूज़ कर सकता था....इसके बाद दो और बॅंक शॉट अमर सर ने मारा...मतलब कि बॉल बैक बोर्ड्स से टकरा कर रिंग के अंदर चली गयी और स्कोर 32-50 पर जाकर अटक गया....कमाल है, सेंटर मे खड़े चुतिया प्लेयर कि तरफ हमारी नज़र पहले क्यों नहीं गई... वो तो एकदम लुल्ल है... खामखाँ हमने इतनी देर तक विपक्षी दल के सबसे मजबूत पक्ष गौतम को निशांने पर रखा... हमें शुरू से ही उनके कमजोर खिलाड़ियों को पकड़ना था...

"अब तुम सब मिलकर एक काम करना...तुम लोग बस बास्केटबॉल  मुझे पास कर देना...."लंबी-लंबी साँस भरते हुए मैने कहा...
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मैं अपनी हर सोच मे कामयाब नही हो सकता था और अपने साथी खिलाड़ियो पर पूरा भरोसा भी नही कर सकता था और बिना पूरे भरोसे की मैं डीडीजी रूल भी अप्लाइ नही कर सकता था...लेकिन मुझे ये मैच भी जीतना था...हमारे इस तरह से अचानक फॉर्म मे लौटने के कारण हॉस्टल  वालो मे उम्मीद की किरण जागी और वो कलेजा फाड़ कर चिल्लाने लगे...और अरुण अपने साथी लौन्डो के साथ मिलकर मेरा नाम चिल्ला रहा था और साथ मे गाली भी बके जा रहा था.. कभी सिटी वालों को, तो कभी लड़कियों को... तो कभी मुझे... वो भी खुल्लम खुल्ला, तेज आवाज़ मे... उसे कोई कुछ बोल भी नहीं सकता था, ना ही रोक सकता था... क्यूंकि हॉस्टल के सीनियर्स भी हमारे बैक टू बैक बास्केट करने से जोशिया गये थे और वो भी मुझे गाली बकते हुए मेरा उत्साह बढ़ा रहे थे... और कमाल कि बात है कि, मुझे बुरा भी नहीं लग रहा था... बल्कि मै प्राउड फील कर रहा था.. इतने लोगो के बीच चारो तरफ अपना नाम सुनकर...

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1 Comments

Raghuveer Sharma

27-Nov-2021 06:23 PM

सर कमाल के डायलॉग लिखते हैं आप बहुत ही मजेदार👌

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